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यो अ॒ग्निं ह॒व्यदा॑तिभि॒र्नमो॑भिर्वा सु॒दक्ष॑मा॒विवा॑सति । गि॒रा वा॑जि॒रशो॑चिषम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yo agniṁ havyadātibhir namobhir vā sudakṣam āvivāsati | girā vājiraśociṣam ||

पद पाठ

यः । अ॒ग्निम् । ह॒व्यदा॑तिऽभिः । नमः॑ऽभिः । वा॒ । सु॒ऽदक्ष॑म् । आ॒ऽविवा॑सति । गि॒रा । वा॒ । अ॒जि॒रऽशो॑चिषम् ॥ ८.१९.१३

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:19» मन्त्र:13 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:31» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:13


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शिव शंकर शर्मा

उपासक का कर्म दिखाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो उपासक (सुदक्षम्) जगत् की रचना में परमनिपुण या परमबलवान् पुनः (अजिरशोचिषम्) महातेजस्वी (अग्निम्) परमात्मदेव के उद्देश्य से (हव्यदातिभिः) भोज्यान्न देने से (नमोभिः+वा) नमस्कारों या सत्कारों से और (गिरा) वाणी से (आविवासति) संसार की सेवा करता है, वह सब सिद्ध करता है ॥१३॥
भावार्थभाषाः - ईश्वर के उद्देश्य से ही सब शुभकर्म कर्त्तव्य हैं, लोग अभिमान से ईश्वर को और सदाचार को भूल जाते हैं, वे क्लेश में पड़ते हैं ॥१३॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (सुदक्षम्) सुन्दर कर्मकुशल (अजिरशोचिषम्) जीर्ण न होनेवाले बलवान् (अग्निम्) परमात्मा का (हव्यदातिभिः) हव्यदान से (नमोभिः, वा) अथवा नमस्कार से (गिरा, वा) अथवा स्तुतिवाक् से (आविवासति) परिचरण करता है ॥१३॥ इसका आगे के मन्त्र से सम्बन्ध है।
भावार्थभाषाः - परमात्मा ही अनश्वर प्रतापवाला तथा ज्ञान का प्रकाशक है, ऐसा समझकर जो मनुष्य हव्यदान=कर्मों द्वारा नमस्कार तथा स्तुतियों द्वारा परमात्मा की उपासना करता है, वह अभीष्ट सिद्धि को प्राप्त होता है ॥१३॥
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शिव शंकर शर्मा

उपासककर्मं दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - य उपासकः। सुदक्षम्=संसारविरचने परमनिपुणं बलवन्तं वा। पुनः। अजिरशोचिषम्=अजीर्णशोचिषम्=महातेजस्कम्। अग्निम्=परमात्मदेवमुद्दिश्य। हव्यदातिभिः=भोज्यान्नप्रदानैः। नमोभिः=नमस्कारैः सत्कारैर्वा। गिरा=वाण्या वा। आविवासति=संसारं तोषयति स सर्वं साधयतीति शेषः ॥१३॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) यो मनुष्यः (सुदक्षम्) सुकुशलम् (अजिरशोचिषम्) अजीर्णबलम् (अग्निम्) परमात्मानम् (हव्यदातिभिः) हव्यदानैः (नमोभिः, वा) अथवा नमनैः (गिरा) वाचा (वा) अथवा (आविवासति) परिचरति ॥१३॥